ना वो अफगानिस्तान के निकले, न किसी पठान के निकले
वो तो कुछ फिरंगे थे, जो अंग्रेजीस्तान के निकले
जोंक की तरह हर खनीज को लूटा, खज़ाने खाली खाली कर वो परेशान से निकले
जिससे सत्ता छिनी थी, उसी को नवाज़ दी
जाते जाते भी वो कर गए एक एहसान दुनिया पर,
लौट कर बुद्धू घर आया कहावत मान कर निकले
जब राक्षस ने दीखाये बड़े बड़े दांत बलवान को, वो कोलगेट और ब्रश से मांज कर निकले
गनी को समझा कर एक बड़ा ठस्सा दिया
वो छुपे जान बचाए, ये आल द बेस्ट कह कर निकले
अफगान की लड़ाई को, 20 साल का व्यंग बना दिया
वो ग़रीब के जनाजे पर, मूंछें तान कर निकले
जो करते थे दावा जुलम को मिटाने का, आतंकवादी को अपना असला थाम कर निकले
सैनिक बहादुर थे इसमे कोई संशय नहीं, बिडेन की राजनीति पर पीठ तान कर निकले
मा ने लाल पकडाये कटेली तारो में, वो हमदर्दी दिखा कर उनके जहान से निकले
करूँ क्या कटाक्ष मैं शातीर बलवान पर, वो कटाक्ष पर कटाक्ष कर विमान से निकले
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