आलस्य ज्ञान! Lethargic Wisdom !

हे आलस्य तू भी कितना आलसी है

क्या तेरा एक ही ग्राहक है? जब देखो मेरे पास बैठा रहता है

पहले तो कभी कभी मेरे पास आता था, अब 24 घंटे यहीं पसरा रहता है

देख मैं तुझे कितना प्यार करता हूँ, तेरी हर बात मानता हूँ

तुझे याद है उस दिन जब सुबह मै जा रहा था सैर के लिए? तेरी बात मानी और नहीं गया

और वो योगा  वाला दिन, फिर तेरी बात मानी और नहीं किया

तेरा प्रतिबिम्ब बन गया हूँ,  ये बात जानता हूँ

कितने सारे ऐसे वाकये है मेरे समर्पण के, क्यूंकि तेरी शक्ति को पहचानता हूँ

मेरे लिए तो तू देवता तुल्य है, बैठे बैठे आराम  देता है  तू तो अमूल्य है

लोग कहते है तेरे साथ रहने से ज़िन्दगी छोटी होती है,

पर वो छोटी भी तो कितनी noughty होती है

आराम से बैठ कर निकलती है, धीरे धीरे लम्बी होकर चलती है

इन कसरत वालो को क्या पता सोने में क्या मज़ा आता है

जब 3-4 बार सुबह का अलार्म बंद करो, तो एक नया नशा सा छाता है

सुबह 2 घंटे भागकर ये लोग वो सुख  नहीं पाते, जो दोपहर की अँगड़ाई में तू दे जाता है

घन्य धन्य है निष्ठा तेरी, राह में न आता कोई रोड़ा

असफल हुए सारे मित्रो के प्रयास, पर तूने मेरा साथ न छोड़ा

सब कर्मो की कामना तू है, तेरे तपस्वी खाये ब्रेड पकोडा

परमसुखी की उपमा है ये पावन शालीन शब्द ‘निगोड़ा’

चल अब तू भी सो जा, थक गया होगा

सुबह से मुझे आलस दे रहा है, तू भी तो पक्क गया होगा

चल फिर दोपहर में फिर जम्हाई लेते हुए मिलते है

मुझे तो तूने दिया वो आराम, जिसके लिए जग करे सारी उम्र काम

अज्ञानी 5 दिन काम करे, 2 दिने तुझे ढूँढ़ते है

मुझ जैसे निर्वाणी तो तुझे 7 दिन पूजते है

तू बहुत कर्मठ है, 24 घंटे खुद फैलने का कर्म करता और कराता है

तू तो अत्यंत ज्ञानी है, मेरे लिए तो तू ही विधाता है 

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