
तोड़ तू आलस की जंजीरे, लक्ष्य तेरा बस इतना सा दूर है चल उठ बाहर निकल तू देख, स्वागत करता अम्बर भरपूर है जो हूंकार गगन को चीरे, उस ध्वनि का कारक तू है काल के जिसने कान मरोड़े, उसकी निर्भीक विरासत तू है ले पहचान अपनी नियति को, लोक परलोक का शासक तू है षड्यंत्कारी जिससे डर कर भागे, निर्भय निर्विकार निरंतर तू है --- *** --- भूत के काल पर जो भविष्य की ताल दे जो वर्तमान सुधार कर पीडियो को मीसाल दे भय जिसके भय से आना ही टाल दे धमनिया जिसकी सागर वेग को संभाल ले वज्र को मसल कर धुल में ढाल दे दिव्य रूप चेतना से वेदना निकाल दे खुदा तेरी रजा से किस्मत उबार दे पहचान स्वयं को परमशक्ति वो तू है! --- *** --- लक्ष्य तुझे पाने को तरसे, वो काबिल अभियार्थी तू है तू बस कदम बड़ा आगे, कायनात तेरे आगे मजबूर है --- *** --- तोड़ तू आलस की जंजीरे, लक्ष्य तेरा बस इतना सा दूर है चल उठ बाहर निकल तू देख, स्वागत करता अम्बर भरपूर है !
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