उछलता कूदता खिलखिलाता रावन लंका आया
आँखों में ख़ुशी के आंसू, चेहरा खिलता जाया
सब दरबारी हैरान होकर देखे दानव के ओर
रावण हॅसे और मुस्कुराये होवे भाव विभोर
रावण आया सीता स्वंयवर से लेकर खाली हाथ
खुश इतना क्यों है ये भयंकर जाने न कोई बात
रावण तो एक स्त्री का स्वामी, वो तो था प्रखंड ज्ञानी
राम सीता के दर्शन पाकर, उसने जाना अंतरयामी
उसकी इच्छा पूर्ण होने को आयी, मुक्त करने आये रघुराई
प्रभु नमन कर हर्षित हो नाचा, अब हुयी तपस्या की सुनवाई
किन्तु अब नयी समस्या हुयी खड़ी, प्रभु दर्शन पाप मुक्त करहिं
अब क्यों प्रभु संहार करेंगे, जीते जी बेडा पार करेंगे
कुल मुक्ति ध्येय था उसका, निकालना था अब कोई रास्ता
माता का हरण कर डाला, प्रभु को संघहार लई विवश कर डाला
युद्ध हुआ अत्यंत भयंकारी, धूमिल होते राक्षस नर नारी
धरती पातळ से सबको बुलाया, एक एक कर मुक्त करवाया
सब शास्त्रों का ज्ञानी था वो, सबसे शक्तिशाली था वो
एक योजना और बनायी, लात मार भगाया विभीषण भाई
मृत्यु का राज बताया, वध अपना सुनिश्चित कराया
अंत समय प्रभु हाथ संहारे, प्रखंड पंडित शिवलोक पधारे
रावण बना गंगा दानवो की, दुर्जन पतीत पावित करवाया
कैसे विलक्षण ब्राह्मण था वो, काल बन महाकाल में समाया
रावण नाचे ता ता थैया, प्रभु के दर्शन करके जो था आया
सब हार कर जीता सब वो, ये अहोभाग्य स्वयं लिखवाया