Khwaab

ऐ ख्वाब कभी दिन मे भी आया करो
आंखे भी तो जाने की तु दिखता क्या है

निकलते नही जागकर देखे सपने
आंसु पूछते है आंखो  मे रड़कता क्या हैं

तेरी  पलको की झलक जब याद आती हैं
मेरी पलको मे फडकता क्या हैं

मेरे ख्वाब कभी उनकी नींद मे भी हो आया कर
वो भी तो जाने हमारा रिश्ता क्या है

—+++++

नजरे झुका कर् जो चुपचाप चला गया
खुशगवार वक़्त का वो एक गुमनाम सपना हैं

गुरबत ए इश्क  को छोड उसने रईस चुना
सिक्को के ढेर मे वो कमजर्फ कितना हैं

सपनो और यादो मे सिर्फ फर्क इतना हैं
एक जीने की ख्वाहिश हैं, दुजा जीया हुआ सपना हैं

read more at my blog Sharad Prinja at TheNavRas.com

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