पूछते हो बुलबुलों का पता हवा से
वो बता भी दे तो कहां पहचान पाओगे
एक वहम और टूटा
तेरा जाना अच्छा तो नही लगा
पर एक झूठा और छूटा
तुम इधर हो उधर हो या कहां हो बता तो दो
तुम हवा ही आग हो या धुआं हो समझा तो दो
अब तो ऐसी आदत पड़ गई है अकेले रहने की
खुद ही पानी पीते है खुद ही को लोरी सुनाते है साहब
अपने ही सिर को थपथपाते है प्यार से
खुद ही को बाहों में भर कर सो जाते है जनाब
वो मुकदमा था मेरा अदालत थी तेरी
वो कत्ल था मेरा वकालत थी तेरी
वो तेरी अदालत और कातिल भी तू है
चलो लिया गुनाह अपने कत्ल का अपने ही सिर पे
तू बस सजा बता हमे सब मंजूर है
बहूतो ने काटा बहुतों ने मिर्ची लगाई है
ऐसे थोड़ी ना हम चिड़चिड़े हो गए
देख कर भी पास से निकल गए
ऐसे कैसे बिछोड़े हो गए
तुम्हारी तारीफ में भी तुम्हे अब नसीहत दिखती है
इतने कैसे तुम नकचढ़े हो गए
गजब दोस्ती थी हमारी जब हम एक जितने थे
फिर तुम ज्यादा बड़े हो गए
आपको हक है सजा चाहे जो देदो
वजह पूछने का हक तो हम भी रखते है