दरवाजे खुले रखे है तेरे आने के लिए
बहुत कुछ बचा रखा है लुटाने के लिए
पुराने खत, वो रूमाल और तस्वीरें छोड़ जाना
कुछ बहाना तो बचे तेरे लोट कर आने के लिए
चलो वो भी ले जाना, खत्म करो ये किस्सा
क्यों छोड़े अब कुछ और फिर पछताने के लिए
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माना की अब हम दोस्त नहीं
फिर भी क्या ये बात बता पाओगे?
कैसे भूले तुम वो हमारी बाते
क्या मुझे भी सीखा पाओगे?
कोई दर्द नहीं है, कोई मिठास भी नहीं है
बस खोखला पन है, और कोई आस भी नहीं है
ये खालीपन जिससे भरूं, क्या वो मलबा दिला पाओगे?
भूलने नही देती ये ठंडी हवा, क्या इसे थोड़ा रोक पाओगे?
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तुम तो उस सपने में थी ना
फिर बाहर कैसे आ गई
सुनो मैं डरपोक हूं साजन
कुछ कह न पाऊंगा
तुम जाओ सपनो में ही रहो
मैं फिर मिलने आऊंगा