हे गंगे तुम अब थम जाओ

अविरल भाव से बहती हो, सब पवित्र कर देती हो

किंतु तुम अब थम जाओ, विनय है तुमसे थम जाओ

गंगोत्री से गंगा सागर तक, मानव ने तुम्हे दुषित किया

माँ माँ कह कर बार बार, सिर्फ तुम्हे शोषित किया

हे माँ तुम हो परमज्ञानी, अब और ना बातो में आओ

हे गंगे तुम थम जाओ, हे गंगे तुम थम जाओ


तुम्हे अविरल पवित्र रखना, सफल मानव का असफल प्रयास

ढूंडन जाये जल चाँद पर, धरती पर छिने तुम्हारे श्वास

 योग्य जो जल के भी न हो, उन्हे गंगा जल न पिलाओ

हे गंगे तुम अब थम जाओ


तुम हो शिव जट्टा से उदगमी, सृष्टि उद्धार तुम्हारा एकमात्र नियम ही

असंतुलित सृष्टि करते ये नर नारी, तुम्हारे लिए तो एक बिमारी

और अब पर दया न दिखलाओ, हे गंगे तुम अब थम जाओ, हे गंगे तुम थम जाओ


गंदे नाले और रसायन, करवाएंगे ये तुम्हारा पलायन

क्यू यूं अविरल तुम बहोगी, इस अयोगय मानव जाति पर – कब तक कृपा करती रहोगी

जीवन जननी हे दयामयी, तुम्हारा अस्तित्व खतरे में है अब

रुक जाओ स्वयं को बचाओ, अब शुद्धता और न फैलाओ

हे गंगे तुम अब थम जाओ, हे गंगे तुम अब थम जाओ


हम भगीरथ को क्या मुह दिखलाएंगे, शिव भी कब तक ये देख पाएंगे

घोर भयंकर तांडव होगा, प्रलय से बचना न संभव होगा

हे गंगे तुम वापस देवलोक चले जाओ, हे गंगे तुम अब थम जाओ

पाप कर्म चर्म सीमा पर आए, प्रलय ही केवल अंतिम उपाए

अब और न पवित्रता बरसाओ, हे गंगे तुम अब थम जाओ

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