थक गया वक्त तुझसे मै
अब तुम मिलने कल आना
जा सो जा अपने घर जाकर तू भी
ना करना कोई भी बहाना
कल करूंगा तेरा इंतजार मैं भी
अभी अकेला रहने दे
दो घड़ी तू भी सांस ले ले
मुझको भी तू ठहरने दे
अधूरा कलाम
एक कलाम और लिखो, शब्द चुराने है
एक तान और छेड़ो, चुनने तराने है
चुप ना बैठा करो बस
तुम बस सपने देखो, मैने वो अपने बनाने है
तुम्हारे कलाम और मेरे ख्याल, एक जैसे है
तुम्हारी सोच और मेरी बात, एक जैसे है
हाय हैलो क्या हाल और इधर उधर की कोई बात, और उनके पीछे जज्बात, एक जैसे है
अकस्मात टकराना यूहीं कहीं, फिर छेड़नी कोई भी बात, वो गुफ्तगू की बिसात एक जैसे है
एक कलाम अधूरा है, पूरा करोगे क्या?
एक आईने का अक्स गुम है, ढूंढने चलोगे क्या?
खूब कलमें रटे है खुदा से मिलने को, वो मशगूल है... तुम मिलोगे क्या?
बेखबर
सरकते रेत से हर पल
संजोता छननी से हर कण
न रुकता कोई भी आ कर
समझाता खुद को अकेला पाकर
नकल करता कुछ दिखने की
ढूंढता खुद अपनी असल
कहां जाए किसे ढूंढे
हम तो खुदी से बेखबर
गुम चुप
चुप हम भी चुप तुम भी
चुप है ये तन्हाईयां
नजर भी चुप है
अधर भी चुप है
खामोश है परछाईंया
आस भी गुम है
तलाश भी गुम है
गुम है सब पास भी
खुद भी गुम है
बेखूद भी गुम है
गुम है एहसास भी
दीवाली प्रार्थना
दीवाली पार्थना
हे राम दीप अब प्रज्वलित हो
करो उजाला जग भर में
हर कोने कोने में, हर तन मन में
हर रग रग में, हर पल पल में
दिखाए रोशनी अब दुनिया को, चमके भारत ऐसा जग भर में
स्वास्थ्य वैभव सब को मिले, रहो आप सबके मन में
हे दिव्य पुरुष अब आ जाओ
करो रामराज अब इस जग में
हे आदिपुरुष, सच्ची दिवाली कर दो
फैले उजाला दुनिया भर में
शुभ, स्वास्थ्य, वैभव सबको मिले
खुशियां हो सबके जीवन में
हे परम पुरुष आपका स्वागत है
विराजो मेरे मन मंदिर में🙏
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🙏शुभ दीपावली 🙏
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आज इसने फिर से ‘ना’ सुना है
'आज' फिर गुजरने लगा है
'कल' जैसा लगने लगा है
'सन्नाटा' चीख रहा है
'स्याह' आंख मींच रहा है
'बेताबी' थक रही है
'खामोशी' कुछ बक रही है
हर कोना मोन है
'आइना' पूछे तु कौन है
अधर सिर्फ थिरक रहा है
जवाब फिर उलझ रहा है
दिल कहीं छुप गया है
आज इसने फिर से ‘ना’ सुना है
इजहार जरूरी थोड़ी है
हर चाहत प्यार थोड़ी है
मन का हो तो सबसे अच्छा
वो तुम्हारे मन का हो जरूरी थोड़ी है
इसे अधूरापन कहूं या जरूरतें कम
सबमें अकेले होना शान थोड़ी है
पी तो लेता हूं कभी ऐसे ही शौंक से
तुझे भूलने को पियूं, ऐसा तू आसमान थोड़ी है
वो नजर से दूर है, वो नजर के पास है
बंद आंखे हसीन सपने है, खुली आंखे स्याह रात है
हरेक रात में नींद और नींद में सपने और सपनो में तुम जरूरी नहीं
आजाद नींद के सपने तुम्हारे गुलाम थोड़ी है
बीती थी, बीती है, बीतेगी जरूर आज भी, कितनी भी स्याह हो रात,
बस पहली किरण का आगाज, फिर टिकना अंधेरे का अंदाज थोड़ी है
आज इसने फिर से ‘ना’ सुना है
बिखरे है सपने, गुम है मुस्कुराहट कहीं
जो तुझे मिला नहीं वो तेरी मंजिल था ही नहीं
बस टूटा है एक आसमान, आखरी मुकाम थोड़ी है

स्वतंत्रता दिवस की छुट्टी
आजादी की छुट्टी मनाने वालो –
बहुत से मरने वालों ने ये बीड़ा उठाया था, हमारे आज के लिए अपना कल गवाया था
गद्दारो ने हमेशा ही हमारी पीठ छिली थी, दुश्मन का लोहा हमने छाती पे खाया था
वो भी सो सकते थे अपनी मां के आंचल में, भारत माँ की पुकार को उन्होनें ज्यादा पाया था
उनकी मां ने उन्हे यही समझया था –
भगत तू दे कुर्बानी बथेरे भगत और आएंगे, फांसी फंदे को चुम कर उसने जीना सिखाया था
आज हम मस्त जीते हैं आजादी की हवा में
ये हवा कर्ज है उस सिपाही का, जो लौट कर न आया था
मना लो इस छुटी को ऐशो आराम से
बस बता देना अपने बच्चों को, ये आजादी कौन लाया था!
जय हिन्द! स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं!
शरद प्रिंजा sharadprinja.com

तुम मेरी कहानी की नजर बट्टू हो गई
जब जब किसी को मुझसे रश्क हुआ
तेरी कहानी बता दी, नजर दूर हो गई
चुप हम भी चुप तुम भी
चुप है ये तन्हाईयां
नजर भी चुप है
अधर भी चुप है
खामोश है परछाईंया
आस भी गुम है
एहसास भी गुम है
गुम है सब पास भी
रुक गई है पवन भी
रुकने लगे है श्वास भी
हे गंगे तुम अब थम जाओ
अविरल भाव से बहती हो, सब पवित्र कर देती हो
किंतु तुम अब थम जाओ, विनय है तुमसे थम जाओ
गंगोत्री से गंगा सागर तक, मानव ने तुम्हे दुषित किया
माँ माँ कह कर बार बार, सिर्फ तुम्हे शोषित किया
हे माँ तुम हो परमज्ञानी, अब और ना बातो में आओ
हे गंगे तुम थम जाओ, हे गंगे तुम थम जाओ
तुम्हे अविरल पवित्र रखना, सफल मानव का असफल प्रयास
ढूंडन जाये जल चाँद पर, धरती पर छिने तुम्हारे श्वास
योग्य जो जल के भी न हो, उन्हे गंगा जल न पिलाओ
हे गंगे तुम अब थम जाओ
तुम हो शिव जट्टा से उदगमी, सृष्टि उद्धार तुम्हारा एकमात्र नियम ही
असंतुलित सृष्टि करते ये नर नारी, तुम्हारे लिए तो एक बिमारी
और अब पर दया न दिखलाओ, हे गंगे तुम अब थम जाओ, हे गंगे तुम थम जाओ
गंदे नाले और रसायन, करवाएंगे ये तुम्हारा पलायन
क्यू यूं अविरल तुम बहोगी, इस अयोगय मानव जाति पर – कब तक कृपा करती रहोगी
जीवन जननी हे दयामयी, तुम्हारा अस्तित्व खतरे में है अब
रुक जाओ स्वयं को बचाओ, अब शुद्धता और न फैलाओ
हे गंगे तुम अब थम जाओ, हे गंगे तुम अब थम जाओ
हम भगीरथ को क्या मुह दिखलाएंगे, शिव भी कब तक ये देख पाएंगे
घोर भयंकर तांडव होगा, प्रलय से बचना न संभव होगा
हे गंगे तुम वापस देवलोक चले जाओ, हे गंगे तुम अब थम जाओ
पाप कर्म चर्म सीमा पर आए, प्रलय ही केवल अंतिम उपाए
अब और न पवित्रता बरसाओ, हे गंगे तुम अब थम जाओ

मदर्स डे
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सारा साल ना पूछा माँ को
ना कभी प्यार से गले लगाया
दुनिया का दिखावा तो देखो
मदर्स डे का मैसेज सबने चिपकाया
सच में प्यार करो जो माँ को
सिर्फ मुस्कुरा कर बात करो
गोदी में कभी सिर रख कर
बच्चा बन कर बात करो
कोई मंदिर मस्जिद गिरिजाघर
माँ से ज्यादा न दे सकता है
इन इमारतों की कोख नही होती
जन्म कर्म सिर्फ माँ से ही होता है
जिसने उंगली पकड़ी थी तुम्हारी
काबिल हो तो हाथ पकड़ो
रोम रोम बना जिसके कणों से
सहारा बन पुण्य स्वीकार करो
ये दिव्य रूप है सचिदानंद का
किंचित प्रभु माँ में न भेद करो
गुण अवगुण न ढूंढना उसमे
श्रवण बन अभिमान करो
कृष्ण जीसस पैगंबर भी थे माँ ने ही जन्मे
शाश्वत सत्य स्वीकार करो
मदर्स डे मनाओ हर रोज
केवल एक दिन तक सीमित न ये त्योहार करो