‘आज’ फिर गुजरने लगा है’कल’ जैसा लगने लगा है’सन्नाटा’ चीख रहा है’स्याह’ आंख मींच रहा है’बेताबी’ थक रही है’खामोशी’ कुछ बक रही हैहर कोना मोन है’आइना’ पूछे तु कौन हैअधर सिर्फ थिरक रहा हैजवाब फिर उलझ रहा हैदिल कहीं छुप गया हैआज इसने फिर से ‘ना’ सुना हैइजहार जरूरी थोड़ी हैहर चाहत प्यार थोड़ी हैमनContinue reading “आज इसने फिर से ‘ना’ सुना है”
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छूटी हुई ज़िंदगी
थोड़ी इधर थोड़ी उधर छोड़ता रहा गुजरती हुई जिंदगीइसी उम्मीद में कि जीयेंगे एकदिन फिर कभी पीछे मुड़ना तो अब असंभव सा हो गयाखुद को फिर से जीना एक सपना सा हो गया पहले छोड़ते थे, अब छूट जाता हैआता हुआ हर पल रेत सा फिसल जाता है जो जिया बस उसकी अब यादें साथContinue reading “छूटी हुई ज़िंदगी”
कुछ शेर
पूछते हो बुलबुलों का पता हवा सेवो बता भी दे तो कहां पहचान पाओगे एक वहम और टूटातेरा जाना अच्छा तो नही लगापर एक झूठा और छूटा तुम इधर हो उधर हो या कहां हो बता तो दोतुम हवा ही आग हो या धुआं हो समझा तो दो अब तो ऐसी आदत पड़ गई हैContinue reading “कुछ शेर”
तुम्हे रुकना ग्वारा नही था
तुम्हे रोकने की कोशिश तो की थीतुम्हे रुकना ग्वारा नही थातुम्हारे साथ था तो सब अच्छा थामैं भी तब तक आवारा नहीं थाकवर चेहरे पर क्या चढ़ाया था तुमनेक्या वो चेहरा भी तुम्हारा नहीं थामज़ाक तो ऐसे ही करते थे तुमहमारे जज्बात ने भी कुछ बिगाड़ा नहीं थाखेल लो सब तुम्हारे लिए ही आए हैहमारेContinue reading “तुम्हे रुकना ग्वारा नही था”
जुल्म ए जालिम
बहुत खुश हूं तेरे आगोश में ए जालिम, तेरा ये जुल्म इतना लुभाता क्यूं है हिम्मत है तो उतार खंजर सीने में, ये धीरे धीरे चुबाता क्यूं है रोक देता है सांसे तेरा बार बार भड़कना, फिर तू हर बार मुस्कुराता क्यूं हैलगाई है आग तो जलने दे घर सबके, तू बार बार बरसात कराताContinue reading “जुल्म ए जालिम”
किसके लिए?
जानता था गलती कर रहा हूंना करता तो ना करता किसके लिए?कुछ तो मकसद तेरे आने का भी होगाहमे तो बताओ आए थे जिसके लिएवो ना आए खिड़की पर एक बार भीथकती रही साइकिल हमारी जिसके लिएढूंढ लेते थे उत्तर का रास्ता दक्षिण से भीउड़ाते रहे कागच के रॉकेट जिसके लिएलानत दे रहा था वोContinue reading “किसके लिए?”
मास्क मुखौटा
हमारी तो मास्क पहन कर ही सांस रुक गईलोग कैसे जीते है ताउम्र मुखौटा पहन कर
लक्ष्य तेरा बस इतना सा दूर है
तोड़ तू आलस की जंजीरे, लक्ष्य तेरा बस इतना सा दूर है चल उठ बाहर निकल तू देख, स्वागत करता अम्बर भरपूर है जो हूंकार गगन को चीरे, उस ध्वनि का कारक तू है काल के जिसने कान मरोड़े, उसकी निर्भीक विरासत तू है ले पहचान अपनी नियति को, लोक परलोक का शासक तू हैContinue reading “लक्ष्य तेरा बस इतना सा दूर है”