बहुत खुश हूं तेरे आगोश में ए जालिम, तेरा ये जुल्म इतना लुभाता क्यूं है हिम्मत है तो उतार खंजर सीने में, ये धीरे धीरे चुबाता क्यूं है
रोक देता है सांसे तेरा बार बार भड़कना, फिर तू हर बार मुस्कुराता क्यूं है लगाई है आग तो जलने दे घर सबके, तू बार बार बरसात कराता क्यूं है
उठ गया हूं फिर से सोने के लिए, तू बार बार मीठी लोरी सुनाता क्यूं है गर इतना ही तंग है मेरी मौजूदगी से तू, फिर सपने में भी बार बार मिलने आता क्यूं है
नहीं मिलना तो ना मिल, हम भी भूले तुझे, ये मेरा ही सामान बार बार तेरी याद दिलाता क्यूं है हकीकत से ख्वाईश बना है तू, “टुटता है हर सपना” कह कर बार बार डराता क्यूं है